कर्नाटक बाढ़ – कारण, प्रभाव और बचाव के उपाय

जब हम कर्नाटक बाढ़, कर्नाटक में लगातार तेज़ बारिश और नदी के उफान से उत्पन्न जल आपदा. इसे कर्नाटक में जलवृद्धि भी कहा जाता है की बात करते हैं, तो तुरंत दो दो प्रमुख कारकों का ख्याल आता है – मानसून, दक्षिण भारत में जून‑सेसेप्टेम्बर तक बरसती लगातार वर्षा और जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग के कारण मौसमी पैटर्न में बदलाव. इन तीनों (कर्नाटक बाढ़, मानसून, जलवायु परिवर्तन) के बीच स्पष्ट संबंध है: जलवायु परिवर्तन मानसून की तीव्रता बढ़ाता है, जिससे बाढ़ के जोखिम में इज़ाफ़ा होता है। साथ ही, आपदा प्रबंधन, सरकारी और स्थानीय स्तर पर बाढ़ रोकथाम एवं राहत कार्य बाढ़ से बचाव में अहम भूमिका निभाता है। यह त्रिकोण (बाढ़‑मानसून‑प्रबंधन) भारत में कई राज्यों के लिए समान पैटर्न दिखाता है, लेकिन कर्नाटक की भूगोलिक स्थिति इसे विशेष बनाती है।

बाढ़ के मुख्य कारण और बाद में दिखने वाले प्रभाव

कर्नाटक के पश्चिमी घाट में स्थित कई नदियां, जैसे कि कॉपर, बांजारा और टुंगभद्रा, बरसात के मौसम में अचानक जलस्राव करती हैं। जब मानसून के दौरान 200 मिमी से अधिक लगातार बारिश होती है, तो इन नदियों का प्रवाह साधारण से कई गुना बढ़ जाता है। इससे निचले क्षेत्रों में जल स्तर तेज़ी से उठता है, डैम के जलाशयों में जलभंडारण क्षमता खत्म हो जाती है और किनारे टूटने लगते हैं। परिणामस्वरूप न केवल कृषि जमीं बँध जाती है, बल्कि सड़कों, पुलों और घरों में भी गंभीर क्षति होती है। पिछले पाँच साल में कर्नाटक में दर्ज उच्चतम जलस्तर 2019, 2021 और 2023 में देखा गया, जब मusanoon की तीव्रता में असामान्य वृद्धि हुई।

भौगोलिक कारणों के अलावा मानवीय कारक भी बाढ़ को बढ़ाते हैं। बाढ़ नियंत्रण हेतु नहरों का रख‑रखाव न होना, जल निकासी प्रणाली की अनियमित व्यवस्था और शहरी क्षेत्र में अति-विकास, सभी मिल कर जल के बहाव को रोकते नहीं हैं। जब ये सब मिलते हैं, तो बाढ़ का प्रभाव सिर्फ पानी नहीं, बल्कि लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी, स्वास्थ्य और आय पर भी पड़ता है। कई बार जलजनित रोग, जैसे डायरिया और जलजन्य बुखार, बाढ़ के बाद तेजी से फैलते हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त बोझ आता है।

इन प्रभावों को कम करने के लिए आपदा प्रबंधन, रिस्क अस्सेसमेंट, चेतावनी प्रणाली और राहत वितरण का एकीकृत मॉडल अपनाना जरूरी है। पहले चरण में मौसम विज्ञान विभाग द्वारा प्रदान की गई सटीक भविष्यवाणी पर आधारित चेतावनी जारी की जाती है। फिर स्थानीय प्रशासन जल निकासी मार्गों को साफ़ करता है और बाढ़‑रोधी बुरेज़ बनाता है। अंत में, राहत सघनता, अस्थायी शरणस्थल और स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करके प्रभावित लोगों को तुरंत सुरक्षित किया जाता है। यह प्रक्रिया बाढ़‑रोकथाम (mitigation) और बाढ़‑अनुकूलन (adaptation) दोनों को कवर करती है।

यदि आप कर्नाटक में रहते हैं या इस क्षेत्र की यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो इन बातों को याद रखें: मौसमी पूर्वानुमान पर नज़र रखें, उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों से बचें और स्थानीय आपदा‑प्रबंधन टीम की निर्देशों का पालन करें। आपदा‑प्रबंधन के आधुनिक टूल, जैसे मोबाइल अलर्ट ऐप और GIS‑आधारित बाढ़‑मैप, अब आसानी से उपलब्ध हैं, जो तेज़ प्रतिक्रिया में मदद करते हैं। सही जानकारी और समय पर तैयारी से बाढ़ से जुड़े नुकसानों को काफी हद तक घटाया जा सकता है। नीचे आप कर्नाटक बाढ़ से संबंधित ताज़ा समाचार, विश्लेषण और विशेषज्ञ राय की विस्तृत सूची पाएँ, जिससे आप स्थिति को बेहतर समझ सकें और अगले कदम तय कर सकें।

कर्नाटक के तुंगभद्रा बांध का गेट टूटा, बाढ़ के पानी ने मचाई तबाही
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Aswin Yoga अगस्त 11, 2024

शनिवार रात कर्नाटक के होस्पेट स्थित तुंगभद्रा बांध का 19 नंबर गेट टूट गया, जिसके कारण बाढ़ का पानी नीचे की ओर बहा दिया गया। आंध्र प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कृष्णा नदी के किनारे रहने वाले निवासियों को सतर्क रहने की चेतावनी दी है। 60-65 टीएमसी पानी निकालने के बाद मरम्मत का काम शुरू होगा।