केरल में RSS पुक्कलम पर FIR: 24‑27 कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई

केरल में RSS पुक्कलम पर FIR: 24‑27 कार्यकर्ताओं पर कार्रवाई

Aswin Yoga
अक्तूबर 3, 2025

केरल के कोल्लम जिला में ओणम थिरुओनम उत्सव के दौरान परथासरथी मंदिर के द्वार पर बनाई गई पुक्कलम में RSS का ध्वज और "ऑपरेशन सिंधूर" शब्द दिखाने पर केरल पुलिस ने 4 सितंबर 2024 को FIR दर्ज की। यह कदम असोकन सी, मंदिर समिति के एक office‑bearer, की शिकायत पर लिया गया, जिसने कहा कि यह कार्य केरल हाई कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है, जिसमें मंदिर परिसर में किसी भी राजनीतिक प्रतीक को लगाना मनाही है।

पृष्ठभूमि: मंदिरों में राजनीति का इतिहास

केरल में कई सालों से राजनीतिक संगठनों को धार्मिक स्थल पर मंच बनाने के लिए प्रतिबंध है। 2022 में कोल्लम के कड़क्कड़ में भी समान विवाद हुआ था, जहाँ एक संगीत कार्यक्रम में RSS का नारा गाया गया था, जिससे बड़ी बहस छिड़ गई। उसी वर्ष सीपीआई(एम) के गीतों को पुक्कलम में शामिल करने पर पुलिस ने कई कार्यकर्ताओं को दरज़ किया था। इन घटनाओं ने यह स्थापित किया कि राज्य की अदालतें और पुलिस दोनों ही धार्मिक उत्सव को शांतिपूर्ण बनाए रखने के लिए कड़ी रेखा खींच रही हैं।

FIR की सामग्री और कानूनी आधार

पुलिस ने FIR में भारतीय न्याया संहिता की धारा 223 (सार्वजनिक अधिकारी द्वारा वैध रूप से जारी आदेशों की अवहेलना), 192 (उत्पीड़न का इरादा) और 3(5) (समूह द्वारा आपराधिक कृत्य) का हवाला दिया है। FIR के अनुसार, कार्यकर्ता न केवल ध्वज लगा रहे थे, बल्कि लगभग 50 मीटर दूरी पर भवन में शिवाजी की छवि वाला फ्लेक्स बोर्ड भी स्थापित किया गया, जिससे संभावित दंगा उत्पन्न हो सकता था।

प्रतिक्रियाएँ: राजीव चंद्रशेखर से लेकर मंदिर समिति तक

केरल भाजपा के प्रमुख राजीव चंद्रशेखर ने FIR को "शर्मीला और बागी" कहा। उन्होंने कहा, "ऑपरेशन सिंधूर भारतीय सैनिकों की शक्ति और बहादुरी का प्रतीक है, इसे दमन करना हर सैनिक की अपमान है।" उन्होंने तत्काल FIR वापस लेने का आग्रह किया और कहा, "केरल कभी भी जामात‑ए‑इस्लामी या पाकिस्तान की धरती नहीं होगा।"
दूसरी ओर, मंदिर के एक अधिकारी ने स्पष्ट किया, "हमारी नीति स्पष्ट है – कोई भी राजनीतिक झंडा, गीत या नारा त्योहारी समय में नहीं होना चाहिए।" उन्होंने कोर्ट के आदेशों का पूरा सम्मान करने की अपील की।

व्यापक प्रभाव: समाज‑राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

यह मामला सिर्फ एक छोटे गांव की पुक्कलम नहीं है; यह केरल में धार्मिक‑राजनीतिक तनाव के एक बड़े धागे की गूँज है। यदि FIR को हटाया गया तो राजनीतिक दलों के बीच “पहले‑से‑पहले” समझौते पर भरोसा टुट सकता है, जिससे भविष्य में और अधिक टकराव की संभावना बनी रहेगी। दूसरी ओर, अगर कार्रवाई कठोर रही तो विरोधी पार्टियों के नज़रिये से यह धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध कदम माना जा सकता है, जिससे सामाजिक असंतोष बढ़ेगा।

आगे क्या हो सकता है?

केरल हाई कोर्ट ने पहले ही कई बार चेतावनी दी थी कि मंदिर में किसी भी तरह का राजनीतिक संबोधन नहीं होना चाहिए। अब अदालत को यह देखना होगा कि FIR में लगाए गए आरोप ठोस हैं या नहीं, और क्या आरोपियों को किसी प्रकार की दंड प्रक्रिया का सामना करना पड़ेगा। कुछ legal experts का मानना है कि यदि आरोपियों ने सच में सार्वजनिक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाने का इरादा नहीं रखा, तो उन्हें हल्का जुर्माना या चेतावनी से ही काम चल सकता है। लेकिन राजनीति‑संबंधी मामलों में न्यायालय अक्सर पक्षपात रहित निर्णय देने की कोशिश करता है, इसलिए इस केस का परिणाम राज्य‑स्तरीय राजनीति में नई दिशा दे सकता है।

मुख्य तथ्य

  • FIR 4 सितंबर 2024 को कोल्लम जिला, केरल में दर्ज
  • 24‑27 RSS कार्यकर्ताओं पर आरोप
  • ध्वज, "ऑपरेशन सिंधूर" शब्द, और शिवाजी फ्लेक्स बोर्ड शामिल
  • केरल हाई कोर्ट के आदेशों का सीधे उल्लंघन
  • राजीव चंद्रशेखर ने FIR को "सिडीयस" कहा

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

FIR किन कारणों से दर्ज की गई?

पुलिस ने बताया कि पुक्कलम में RSS का ध्वज और "ऑपरेशन सिंधूर" शब्द लगाना केरल हाई कोर्ट के निषेध के विरुद्ध था, और इससे संभावित दंगा उकसाने की संभावना थी, इसलिए धारा 223, 192 और 3(5) के तहत FIR दर्ज की गई।

केरल के मूलभूत नियम क्या हैं?

केरल हाई कोर्ट ने स्पष्ट आदेश जारी किया है कि कोई भी राजनैतिक झंडा, नारा या प्रतीक धार्मिक स्थल पर नहीं दिखाया जा सकता; यह नियम सभी धर्म, त्यौहार और सार्वजनिक समारोहों पर लागू होता है।

राजीव चंद्रशेखर का मुख्य तर्क क्या था?

उन्होंने कहा कि "ऑपरेशन सिंधूर" भारतीय सेना की शौर्य का प्रतीक है और इसे दमन करना सैनिकों की अपमानना है; इसलिए उन्होंने FIR को हटाने और इसे "शर्मीला और बागी" कहने की मांग की।

क्या भविष्य में इसी तरह की घटनाएँ दोहराई जा सकती हैं?

यदि राजनीतिक दलों ने कोर्ट के आदेशों का सम्मान नहीं किया, तो ऐसे मामलों की संभावना बनी रहेगी। हालाँकि, अदालत और पुलिस दोनों ही अनुशासन बनाए रखने के लिए कड़ी नजर रख रहे हैं, इसलिए भविष्य में ऐसे संघर्षों को रोकने के लिये अग्रिम समझौते आवश्यक हैं।

15 टिप्पणि

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    Neha xo

    अक्तूबर 3, 2025 AT 06:26

    केरल में मंदिरों में राजनीतिक चिन्ह लगाना हमेशा से संवेदनशील मुद्दा रहा है। हाई कोर्ट के आदेश को सम्मान देना आवश्यक है, नहीं तो समाज में दंगा‑फसाद का खतरा बढ़ जाता है। इस FIR से यह स्पष्ट होता है कि पुलिस अब भी राज्य के सांविधिक नियमों को लागू कर रही है। धार्मिक उत्सवों को शांति से मनाने के लिए सभी पक्षों को खुद को सीमित करना चाहिए।

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    Rahul Jha

    अक्तूबर 3, 2025 AT 20:20

    RSS के झंडे को मंदिर में दिखाना सीधे कोर्ट के निषेध का उल्लंघन है 😡 सरकार की ओर से ऐसे कदम जरूरी हैं 🙏

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    Gauri Sheth

    अक्तूबर 4, 2025 AT 10:13

    ये मामला व्हावना और राजनीति का टक्कर है, लेकिन सच्चाई तो यही है कि मंदिर को राजनीति से अलग रखना चाहिए। कोर्ट ने यही कहा था और अब पुलिस भी वही कर रही है। अगर नियम नहीं मानेंगे तो आगे और भी बढ़ेगा दंगल।

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    om biswas

    अक्तूबर 5, 2025 AT 00:06

    केरल में धार्मिक स्थल पर राजनीति लाना एक सूक्ष्म लेकिन खतरनाक प्रयोग है। पहली बात, संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए, चाहे वह किसी भी संगठन का हो। दूसरा, उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि किसी भी धार्मिक उत्सव में राजनीतिक झंडा या नारा नहीं दिखाया जाना चाहिए। तीसरा, इस FIR द्वारा यह संकेत मिलता है कि पुलिस अब भी आदेशों को लागू करने में सक्रिय है। चौथा, पुक्कलम में लगाए गए RSS झंडे ने स्थानीय लोगों में असहजता उत्पन्न की। पाँचवाँ, "ऑपरेशन सिंधूर" का उल्लेख भी संवेदनशील है क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को उठाता है। छठा, शैवजी की फोटो वाला फ्लेक्स बोर्ड भी समस्यात्मक हो सकता है क्योंकि यह इतिहास को राजनीति के साथ जोड़ता है। सातवाँ, इस तरह की घटनाएँ अक्सर जनता में विभाजन को बढ़ावा देती हैं। आठवाँ, स्थानीय समुदाय के प्रतिनिधियों ने कोर्ट के आदेशों का पालन करने की अपील की है। नौवाँ, राजनीतिक दलों को इस बात की समझ रहनी चाहिए कि धर्म और राजनीति का मिश्रण सामाजिक तनाव को बढ़ा सकता है। दसवाँ, अगर FIR को हटाया गया तो भविष्य में नियम उल्लंघन की आवृत्ति बढ़ सकती है। ग्यारहवाँ, न्यायालय इस मामले को गंभीरता से लेगा और संभावित दंड का निर्धारण करेगा। बारवाँ, कई कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि इरादा ही प्रमुख है, यदि कोई आपराधिक इरादा नहीं था तो दंड हल्का रहेगा। तेरहवाँ, हालांकि, न्यायालय को सार्वजनिक व्यवस्था के जोखिम को भी देखते हुए सख्त फैसला लेना पड़ सकता है। चौदहवाँ, यह केस केरल में भविष्य में धार्मिक‑राजनीतिक संतुलन के लिये एक मानक स्थापित कर सकता है। पंद्रहवाँ, अंततः, सभी को कोर्ट के आदेशों का सम्मान करना चाहिए ताकि सामाजिक शांति बनी रहे।

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    sumi vinay

    अक्तूबर 5, 2025 AT 14:00

    ऐसे मामलों में संवाद ही कुंजी है, सभी पक्षों को मिलकर समाधान निकालना चाहिए। आशा है कि आगे भी कानूनी प्रक्रियाएँ निष्पक्ष रहेंगी।

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    Anjali Das

    अक्तूबर 5, 2025 AT 15:40

    जैसे तुम कह रही हो वैसा ही नहीं है, अधिकांश लोग इस तरह के झंडे को असहनीय मानते हैं और कोर्ट की चेतावनी को नज़रअंदाज़ नहीं करते। यह सिर्फ़ एक छोटी‑सी चीज़ नहीं, बल्कि सामाजिक मूल्यों की रीढ़ है।

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    Dipti Namjoshi

    अक्तूबर 6, 2025 AT 03:53

    धर्म और राजनीति के बीच सीमा बनाना वास्तव में सामाजिक सामंजस्य के लिये आवश्यक है। सभी समुदायों की भावनाओं को समझते हुए, हमें नियमों का पालन करना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी टकराव न हों।

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    Prince Raj

    अक्तूबर 6, 2025 AT 17:46

    इस FIR में सेक्शन 223, 192 और 3(5) का उल्लेख किया गया है, जो कि प्रोसेसिंग के दायरे को स्पष्ट करता है। कॉम्प्लेक्स लीगल फ्रेमवर्क के तहत, एंटिटी को साक्ष्य‑आधारित निर्णय की आवश्यकता होगी।

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    Gopal Jaat

    अक्तूबर 7, 2025 AT 07:40

    यह घटना दर्शाती है कि कानून का सम्मान बिना राजनीतिक दबाव के भी किया जा सकता है। सार्वजनिक स्थलों पर संवेदनशीलता बनाए रखना हर नागरिक की जिम्मेदारी है।

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    UJJAl GORAI

    अक्तूबर 7, 2025 AT 21:33

    अरे वाह, फिर से राजनीति ने मंदिर के दरवाज़े पर घुसी, जैसे हर साल का यही नॉटी ट्रेंड हो। कोर्ट के आदेश तो मानने का नाम भी नहीं लेता, बस शोर गूँजते रहेंगे।

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    Satpal Singh

    अक्तूबर 8, 2025 AT 11:26

    सभी पक्षों को इस मुद्दे पर संयम बनाए रखना चाहिए और कोर्ट के निष्कर्षों का पालन करना चाहिए। इससे सामाजिक शांति बनी रहेगी।

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    Devendra Pandey

    अक्तूबर 8, 2025 AT 13:06

    इतनी खामोशी में भी यह स्पष्ट है कि कानून का उल्लंघन कभी अनदेखा नहीं रहता। हमें समय के साथ न्याय को देखना पड़ेगा।

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    manoj jadhav

    अक्तूबर 9, 2025 AT 01:20

    यह विवाद दिखाता है कि धर्मस्थल पर राजनीति की उपस्थिति कितनी संवेदनशील हो सकती है; इसलिए सभी को मिलकर एक समझौते की ओर बढ़ना चाहिए; इससे भविष्य में संभावित टकराव कम हो सकते हैं।

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    saurav kumar

    अक्तूबर 9, 2025 AT 15:13

    यह मामला बहुत जटिल है।

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    Ashish Kumar

    अक्तूबर 10, 2025 AT 05:06

    राजनीतिक ध्वज को धार्मिक स्थल पर लाना एक सूक्ष्म लेकिन गंभीर अपराध है; न्यायालय के इस निर्णय से भविष्य में समान घटनाओं को रोकने की आशा है।

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