
लाडकी बहीण योजना: e-KYC अनिवार्य, 26 लाख फर्जी लाभार्थियों के खुलासे के बाद भुगतान पर संकट
क्या बदल गया: e-KYC अनिवार्य, भुगतान जोखिम में
महाराष्ट्र सरकार की मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहीण योजना—जिसका लक्ष्य 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की सहायता देना है—अब अपने सबसे बड़े कसौटी-क्षण से गुजर रही है। 18 सितंबर 2025 को जारी सरकारी प्रस्ताव (जीआर) के बाद हर लाभार्थी के लिए आधार-आधारित e-KYC कराना जरूरी हो गया है। वजह? सत्यापन में सामने आए 26 लाख से ज्यादा ऐसे नाम, जिनमें पुरुष भी शामिल पाए गए और जिन्होंने गलत ढंग से लाभ उठाया।
जीआर के अनुसार e-KYC दो महीने के भीतर पूरा न होने पर भुगतान रोका जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, हर साल जून में वार्षिक e-KYC अपडेट भी करना होगा। जो लोग धोखाधड़ी में पकड़े जाएंगे, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान है। राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिती तटकरे ने सोशल मीडिया पर प्रक्रिया को ‘सरल और सुविधाजनक’ बताया है, लेकिन ग्रामीण इलाकों और कम आय वाले परिवारों की बड़ी आबादी के लिए यही सबसे पेचीदा हिस्सा बन गया है।
योजना की शुरुआत 28 जून 2024 को बड़े राजनीतिक वादे के रूप में हुई थी। अब जब पोर्टल पर 1.12 करोड़ से अधिक आवेदन और 1.06 करोड़ से ज्यादा स्वीकृतियाँ दर्ज हो चुकी हैं, सत्यापन की सख्ती ने भरोसे और पहुँच—दोनों को कसकर पकड़ लिया है। सवाल यह है कि पारदर्शिता की कोशिश कहीं उन लाखों असली लाभार्थियों के लिए बाधा तो नहीं बन रही जो डिजिटल प्रक्रियाओं तक सहज पहुँच नहीं रखते?
ग्राउंड से जो संकेत मिल रहे हैं, वे चिंताजनक हैं। कई महिलाओं ने बताया कि पोर्टल पर बार-बार एरर दिख रहा है, ओटीपी नहीं आता या डेटा मैच नहीं हो रहा। कुछ को दफ्तरों के कई चक्कर लगाने पड़ रहे हैं, तो कुछ एजेंटों को शुल्क देकर काम कराने को मजबूर हैं। एक विधवा लाभार्थी मीरा राउत ने साफ कहा—इस मदद से गरिमा मिली, अब डर है कि अगले महीने पैसा रुकेगा। यह डर अकेले उनका नहीं, हजारों घरों तक फैला हुआ है।
सरकार के तर्क साफ हैं—नकली लाभार्थियों पर लगाम, भुगतान में नियमितता और अन्य कल्याण योजनाओं से जोड़ने की सुविधा। मगर जमीनी सच यह भी है कि डिजिटल ढांचे में छोटी-सी रुकावट भी कमजोर तबकों के लिए बड़ी दीवार बन जाती है।

जमीनी अड़चनें, डिजिटल विभाजन और आगे का रास्ता
e-KYC का मतलब सरल भाषा में यही है कि लाभार्थी का आधार नंबर उसके मोबाइल/बायोमैट्रिक से मिलान कर सरकारी रिकॉर्ड में सत्यापित किया जाए। तकनीक सही हो तो यह प्रक्रिया मिनटों में पूरी हो सकती है। लेकिन ग्रामीण नेटवर्क, पुराना मोबाइल, आधार से मोबाइल न जुड़ा होना, बैंक खाते में नाम/जन्मतिथि की विसंगति—ये छोटी दिखने वाली चीजें सबसे ज्यादा देरी करवा रही हैं।
इस बीच, स्कीम की पात्रता स्पष्ट है—21 से 65 वर्ष की महिलाएं, परिवार की वार्षिक आय 2.5 लाख रुपये से कम। वास्तविक लाभार्थियों के लिए चुनौती पात्रता नहीं, प्रक्रिया है। यही वजह है कि कई स्वीकृत लाभार्थी भी अब भुगतान रुकने के डर से परेशान हैं।
ऐसी बड़ी योजनाओं में धोखाधड़ी पकड़ना आसान नहीं होता। 26 लाख संदिग्ध या अयोग्य नामों का सामने आना बताता है कि डेटा-आधारित जाँच जरूरी थी। पर समय-सीमा सख्त रखने के साथ सरकार को पहुँच भी आसान बनानी होगी—वरना जोखिम यह है कि फर्जी तो छँटेंगे, पर असली भी छूट जाएंगे।
मध्य प्रदेश जैसी योजनाओं—जैसे मुख्यमंत्री लाड़ली बहना—में भी e-KYC और बैंक सत्यापन के बाद ही भुगतान का रास्ता साफ हुआ था। फर्क इतना कि जहां कैश-ट्रांसफर योजनाएं संख्या में बड़ी होती हैं, वहां सत्यापन के लिए ऑफलाइन कैंप और मोबाइल बायोमैट्रिक यूनिट्स जैसी सुविधाएँ साथ चलें, तो बहिष्कार का जोखिम घटता है। महाराष्ट्र में भी यही मॉडल मददगार हो सकता है।
लाभार्थियों के अनुभव बताते हैं कि सबसे आम रुकावटें तीन हैं—पोर्टल एरर, आधार-लिंक्ड मोबाइल की दिक्कत, और दस्तावेजों में बुनियादी असंगति। इनमें से दो का हल मौके पर मिल सकता है: आधार-सीडिंग और नाम/जन्मतिथि सुधार की रसीद के साथ अस्थायी सत्यापन की छूट। तीसरे के लिए अधिकृत सहायता केंद्रों पर बायोमैट्रिक विकल्प रखें, ताकि ओटीपी निर्भरता कम हो।
पारदर्शिता तभी सार्थक है जब उसकी कीमत सबसे कमजोर नहीं चुकाएँ। ग्रामीण महिलाओं, विधवाओं और एकल माताओं के लिए ‘डिजिटल-फर्स्ट’ मॉडल तभी काम करेगा जब ‘ऑफलाइन-फ्रेंडली’ सपोर्ट साथ हो। पंचायत स्तर पर शिविर, तय दिनों में महिला एवं बाल विकास कार्यालयों में विशेष काउंटर, भीड़ वाले इलाकों में मोबाइल सहायता वाहन—ये कदम अगले 6–8 हफ्तों में निर्णायक साबित हो सकते हैं।
लाभार्थियों के लिए उपयोगी दिशा-निर्देश:
- समयसीमा याद रखें: सितंबर 18, 2025 से दो महीने के भीतर e-KYC पूरा करें, वरना भुगतान रुक सकता है।
- आधार-लिंक्ड मोबाइल: अगर मोबाइल लिंक नहीं है, नजदीकी अधिकृत केंद्र पर बायोमैट्रिक से e-KYC करवाएँ।
- दस्तावेजों में मेल: बैंक खाते, आधार और आवेदन में नाम/जन्मतिथि एक समान रखें। असंगति हो तो पहले सुधार कराएँ।
- एजेंट शुल्क से बचें: सरकारी केंद्रों/काउंटर पर प्रक्रिया सामान्यतः नाममात्र/निःशुल्क होती है। रसीद लें।
- वार्षिक अपडेट: हर साल जून में e-KYC का नवीनीकरण करना होगा—डायरी/कैलेंडर में नोट करें।
नीतिगत मोर्चे पर सरकार के पास भी सुधार के मौके हैं। पोर्टल की तकनीकी क्षमता बढ़ाना, पीक समय में सर्वर का स्केल-अप, बहुभाषी निर्देश, और एरर कोड की साफ व्याख्या—ये चार कदम तुरंत असर दिखाएँगे। साथ ही, एसएमएस/व्हाट्सएप के जरिए स्टेप-बाय-स्टेप गाइड और क्यूआर-आधारित टोकन प्रणाली से कतारें कम की जा सकती हैं।
राजनीतिक नज़र से देखें तो यह उस विरोधाभास की मिसाल है जिसमें चुनावी वादा महिलाओं की आर्थिक आज़ादी बढ़ाने को कहता है, मगर अमल में वही महिलाएँ प्रक्रिया के बोझ में फँस जाती हैं। विपक्ष सवाल उठा रहा है कि यह सख्ती चुनाव के बाद ही क्यों आई और क्या राज्य ने डिजिटल साक्षरता की कमी का अनुमान लगाकर पहले से सहूलियतें तैयार की थीं। सरकार का जवाब—बिना सत्यापन के रिसाव नहीं रुकेगा; सत्यापन होगा तो भुगतान नियमित रहेगा।
आँकड़े बताते हैं कि योजना का पैमाना बहुत बड़ा है—करोड़ से ज्यादा आवेदनों के बीच अगर लाखों फर्जी नाम निकले हैं, तो कठोरता स्वाभाविक है। चुनौती यह है कि कठोरता ‘न्याय’ बने, ‘दंड’ नहीं। तकनीक और पहुँच—दोनों को साथ लेकर चलना ही इस योजना की विश्वसनीयता और भरोसे का असली इम्तिहान होगा।
आने वाले हफ्तों में नज़र तीन बातों पर रहेगी: क्या पोर्टल स्थिर और तेज़ होता है, क्या ज़मीनी स्तर पर सहायता कैंपों की संख्या बढ़ती है, और क्या वास्तविक लाभार्थियों का पैसा बिना बाधा समय पर पहुँचने लगता है। अगर इन तीन मोर्चों पर सुधार दिखा, तो पारदर्शिता और कल्याण—दोनों एक साथ हासिल किए जा सकते हैं।
Aswin Yoga
मैं एक पत्रकार हूँ और भारत में दैनिक समाचारों के बारे में लेख लिखता हूँ। मेरा उद्देश्य समाज को जागरूक करना और सही जानकारी प्रदान करना है।
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