वैकुंठ चतुर्दशी 2025 का त्योहार मंगलवार, 4 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा, जब काशी के मंदिरों में भक्तों की भीड़ लग जाएगी। इस दिन की विशेषता है — एक ही दिन में दो अलग-अलग देवताओं की पूजा: भगवान विष्णु और भगवान शिव। यह अद्वितीय संयोग नहीं, बल्कि पौराणिक कथा का अंतिम प्रमाण है। जब भगवान विष्णु ने काशी में भगवान शिव की पूजा की, तो उन्होंने एक ऐसा राजमार्ग खोला जो अब तक भक्तों के लिए मोक्ष का द्वार बना हुआ है। इसीलिए इस दिन को ‘हरि-हर पूजा’ का दिन कहा जाता है।
निशित काल: 52 मिनट का अद्भुत समय
इस वर्ष का सबसे महत्वपूर्ण समय निशित काल है — 4 नवंबर 2025 की रात 11:39 बजे से 5 नवंबर की सुबह 12:31 बजे तक। ये सिर्फ 52 मिनट हैं, लेकिन इन्हीं मिनटों में जो पूजा की जाएगी, वह अनंत फल देती है। जगरण के आध्यात्मिक संपादक योगेश जोशी ने कहा, "यह समय ऐसा है जब दोनों देवता एक साथ उपस्थित होते हैं। इस बीच की पूजा वैदिक विधि के अनुसार करने से जीवन के सभी दुख दूर हो जाते हैं।" एनडीटीवी के धार्मिक विशेषज्ञ भी इसी बात पर जोर देते हैं। यही कारण है कि भक्त इस समय के लिए जागते रहते हैं — चाहे उनकी आंखें थकी हों, लेकिन आत्मा जागी होती है।
शुभ मुहूर्त और योग: कौन-सा समय क्यों महत्वपूर्ण?
इस दिन केवल निशित काल ही नहीं, बल्कि कई अन्य शुभ योग भी बन रहे हैं। रवि योग सुबह 6:08 बजे से दोपहर 12:34 बजे तक, फिर सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग दोपहर 12:34 बजे से शुरू होते हैं। ये दोनों योग एक साथ आना बहुत दुर्लभ है। नवभारत टाइम्स के ज्योतिषी बताते हैं कि इस दिन चंद्रमा धनु राशि से मेष राशि में प्रवेश कर रहे हैं — यह भी एक शुभ संक्रांति है।
अन्य शुभ मुहूर्त: अभिजित मुहूर्त (11:24 बजे से 12:09 बजे), ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:51 से 5:43), विजय मुहूर्त (1:54 बजे से 2:38) और गोधूलि बेला (शाम 5:34 से 6:00)। आजतक के अनुसार, शाम 5:35 बजे से 7:34 बजे तक का समय भी विशेष रूप से शुभ है। इसलिए जो लोग रात में जाग नहीं सकते, वे शाम के समय पूजा कर सकते हैं।
अशुभ समय: इन घंटों से बचें
परंपरा के अनुसार, इस दिन कुछ समय अशुभ माने जाते हैं। राहु काल (3:00 बजे से 4:30 बजे), गुलिक काल (12:00 बजे से 1:30 बजे), यमगंड (9:00 बजे से 10:30 बजे) और भद्रकाल (रात 10:36 बजे से अगली सुबह 6:36 बजे तक) इन समयों में कोई भी धार्मिक कार्य नहीं करना चाहिए। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पंचक काल भी 12:35 बजे तक चला, जिसके बाद ही सभी शुभ कार्य शुरू हो सकते हैं।
पौराणिक कथा: काशी में विष्णु की पूजा क्यों?
कहते हैं, एक बार भगवान विष्णु ने अपने आप को वैकुंठ से निकालकर काशी में आकर भगवान शिव की पूजा की। उन्होंने अपने अनंत शक्ति को भी छोड़ दिया और एक भक्त की तरह नम्रता से प्रार्थना की। इस दृश्य को देखकर भगवान शिव ने उन्हें वैकुंठ धाम का मार्ग दिखाया — जो आज तक भक्तों के लिए एक आशीर्वाद है। नैडुनिया के धार्मिक विभाग के अनुसार, "इसी दिन से वैकुंठ चतुर्दशी का पर्व शुरू हुआ।"
एनडीटीवी के धार्मिक संपादक ने कहा, "जब आप हरि-हर की साथ-साथ पूजा करते हैं, तो शिव आपके सभी दुख हटाते हैं और विष्णु आपको सुख-समृद्धि देते हैं। यही वैकुंठ का मार्ग है।" यही वजह है कि इस दिन को जीवन का अंतिम उद्देश्य — मोक्ष — प्राप्त करने का एक अवसर माना जाता है।
कैसे करें हरि-हर पूजा?
साधारण विधि यह है: सुबह नहाकर शुद्ध वस्त्र पहनें। एक शिवलिंग और एक विष्णु मूर्ति के सामने दो दीपक जलाएं। चंदन, फूल, अक्षत और जल चढ़ाएं। दोनों देवताओं के लिए अलग-अलग आहुति दें। रात के निशित काल में, एक शिवलिंग और एक शालिग्राम पर जल अर्पित करें। दोनों के लिए एक साथ "ॐ नमः शिवाय" और "ॐ नमो नारायणाय" का जाप करें। अंत में दान के रूप में अन्न, वस्त्र या धन दें। इस पूजा का अंत अपने घर के लिए शांति की प्रार्थना से करें।
यह त्योहार क्यों खास है?
इस दिन की खासियत यह है कि यह एक ऐसा दिन है जब दो विरोधी देवता — जिन्हें अक्सर अलग भक्ति के लिए चुना जाता है — एक साथ मिलते हैं। यह एक दर्शन है: शिव की तपस्या और विष्णु की कृपा का सामंजस्य। यह बताता है कि भक्ति का रास्ता एक नहीं, बल्कि अनेक है। यह दिन भी एक अंतर्निहित संदेश देता है — जब दो विरोधी शक्तियां एक हो जाती हैं, तो असंभव संभव हो जाता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
वैकुंठ चतुर्दशी का मुख्य आध्यात्मिक लाभ क्या है?
वैकुंठ चतुर्दशी पर हरि-हर की साथ-साथ पूजा करने से जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। विष्णु की कृपा से समृद्धि और शिव के आशीर्वाद से शांति प्राप्त होती है। निशित काल में की गई पूजा का फल अनंत माना जाता है, जो अन्य दिनों की पूजा से अलग है।
क्या घर पर भी हरि-हर पूजा की जा सकती है?
हां, घर पर भी बिना किसी बाधा के हरि-हर पूजा की जा सकती है। आपको बस एक शिवलिंग और शालिग्राम या विष्णु मूर्ति की आवश्यकता है। दोनों के लिए अलग-अलग दीपक, फूल और जल चढ़ाएं। रात के निशित काल में दोनों के नाम का जाप करें। यह वैदिक विधि के अनुसार ही आध्यात्मिक फल देती है।
क्या इस दिन कोई व्रत रखना चाहिए?
हां, इस दिन निराहार व्रत रखना बहुत शुभ माना जाता है। यदि नहीं रख सकते, तो फलाहार या केवल दूध और फल खाएं। यह व्रत शरीर को शुद्ध करता है और मन को धार्मिक भावना से जोड़ता है। विशेष रूप से निशित काल के दौरान भोजन न करना बहुत महत्वपूर्ण है।
इस दिन काशी जाना जरूरी है?
नहीं, यह अनिवार्य नहीं है। हालांकि काशी में इस दिन की पूजा विशेष शक्ति रखती है, लेकिन घर पर भी वैदिक विधि के अनुसार पूजा करने से वही फल मिलता है। आध्यात्मिक भावना और निष्ठा ही सच्चा अर्घ्य है, न कि दूरी।
वैकुंठ चतुर्दशी और कार्तिक पूर्णिमा में क्या अंतर है?
वैकुंठ चतुर्दशी एक दिन पहले आती है और इसमें हरि-हर की साथ-साथ पूजा होती है, जबकि कार्तिक पूर्णिमा में विष्णु की विशेष पूजा होती है और दीप दान का रिवाज है। वैकुंठ चतुर्दशी मोक्ष की ओर ले जाती है, जबकि कार्तिक पूर्णिमा शुभता और शांति का प्रतीक है।
क्या इस दिन अशुभ योगों के बारे में चिंता करनी चाहिए?
अगर आप निशित काल या अन्य शुभ मुहूर्त में पूजा कर रहे हैं, तो अशुभ योगों की चिंता नहीं करनी चाहिए। ये अशुभ समय वहां लागू होते हैं जहां नई शुरुआत की जा रही हो — जैसे विवाह, निवास या व्यापार। पूजा के लिए शुभ मुहूर्त ही मान्य है।