
वॉयस-ओवर टेक्नोलॉजी: 15 भाषाओं में लाइव ट्रांसलेट और आवाज़ क्लोनिंग के बीच प्राइवेसी का नया संकट
AI वॉयस-ओवर तकनीक: भाषा बदलें, फीलिंग बदलें, आवाज़ न बदलें
सोचिए, किसी फिल्म के डायलॉग या लाइव स्पोर्ट्स कमेंट्री को एक ही वक्त पर 15 अलग-अलग भाषाओं में सुनना अब हकीकत है। नई वॉयस-ओवर तकनीक अब न सिर्फ ट्रांसलेट करती है, बल्कि आपकी असली आवाज़ और उसकी भावनाओं को लग-भग वैसे ही दूसरी भाषा में पेश कर देती है। इसकी वजह से यूट्यूबर, ऑनलाइन टीचर, इंटरनेशनल कंपनियां और फिल्म इंडस्ट्री अपनी पहुंच दुनिया भर में फैला रही हैं। सबसे आगे हैं Camb.ai के MARS और BOLI जैसे टूल्स, जो 140 भाषाओं तक सपोर्ट करते हैं, साथ ही Meta का SEAMLESSM4T, जो 101 भाषाओं में तुरंत स्पीच-टू-स्पीच ट्रांसलेट करता है। ये टूल्स वॉयस की बेसिक पहचान बचाए रखते हैं, यानी आपकी भाषा बदलेगी, पर आपके बोलने का अंदाज़ पहचान में रहेगा।
रियल टाइम ट्रांसलेशन से कई गेमचेंजर यूज़ सामने आ रहे हैं। डबस्ट्रीम जैसे प्लैटफॉर्म लाइव इवेंट्स को एक साथ कई भाषाओं में ब्रॉडकास्ट कर रहे हैं। ट्विटर या सोशल मीडिया पर वीडियो क्लिप तुरन्त आपकी भाषा में सुन सकते हैं। फिल्मों और वेबसीरीज में हाई-क्वालिटी डबिंग अब तेज, सस्ती और पहले से कहीं बेहतर हो गई है। न सिर्फ एम्पलीफायर मार्केटिंग के लिए, बल्कि ऑनलाइन टीचिंग, हेल्पलाइन, इंटरनेशनल सेमिनार या मल्टीनेशनल कंपनियों के इन-हाउस ट्रेनिंग तक में इनका खूब इस्तेमाल हो रहा है।
तकनीकी मजबूती के साथ आती हैं कुछ मुश्किलें भी
हर नई तकनीक की अपनी चुनौतियां होती हैं, यहां भी कुछ बड़ी खामियां दिख रही हैं। सबसे पहली है कल्चरल मिक्सअप – हर भाषा में शब्दों के जेंडर या भाव अलग होते हैं, जैसे हिंदी में 'आप', अंग्रेज़ी में 'you', लेकिन इसका भाव हर जगह सेम नहीं बनता। कई बार वॉयस-ओवर सिस्टम भावना या टोन को सही पकड़ नहीं पाते, जिससे मेसेज का मतलब बदल सकता है। दूसरी चुनौती है एक्सेंट और लो-रिसोर्स यानी कम बोलचाल वाली भाषाओं की – जैसे किसी नॉर्थईस्ट इंडियन बोली या अफ्रीकन भाषा में ट्रांसलेशन का स्तर कमज़ोर है। ट्यूनिंग और डेटा की कमी की वजह से सिस्टम गलती कर देते हैं।
सबसे बड़ा खतरा है प्राइवेसी को लेकर – अब जब कोई किसी की असली आवाज़ मिनटों में क्लोन कर सकता है, तो फर्जी कॉल्स, फेक न्यूज और फ्रॉड के मामले बड़े पैमाने पर बढ़ सकते हैं। एक बार डेटा लीक हो गया, तो किसी की भी आवाज़, उसके इमोशन, यहां तक कि बायोमेट्रिक पैटर्न से छेड़छाड़ मुमकिन है। कंपनियां सुरक्षा के दावे कर रही हैं, लेकिन इसका हल निकालना अभी बाकी है।
iTranslate Voice जैसे मोबाइल ऐप भी आम लोगों के लिए 40 भाषाओं में बात करने की सुविधा दे रहे हैं, वहीं बड़ी कंपनियां खास प्रोजेक्ट्स के लिए कस्टम इंफ्रास्ट्रक्चर, स्पेशल मॉडल और एंटरप्राइज पैकेज ऑफर कर रही हैं। भावनाओं और टोन को बेहतर पकड़ने के लिए प्रोसोड़ी मॉडल पर तेज़ी से काम चल रहा है।
टेक्नोलॉजी रफ्तार से आगे बढ़ रही है, लेकिन इसके साथ एक बड़ी जिम्मेदारी भी आती है – सही ट्रांसलेशन, कल्चर की कद्र और यूजर की प्राइवेसी बनाए रखना। आने वाले वक्त में देखना होगा कि ये बैलेंस कैसे बनता है।

समीर चौधरी
मैं एक पत्रकार हूँ और भारत में दैनिक समाचारों के बारे में लेख लिखता हूँ। मेरा उद्देश्य समाज को जागरूक करना और सही जानकारी प्रदान करना है।
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