
यासिन मलिक ने दायर किया शॉकिंग हलफ़नामा: IB ने निर्देशित किया हाफ़िज़ सईद से मिलना, मनमोहन सिंह ने किया धन्यवाद
हाफ़िज़ सईद से मुलाकात के पीछे की साजिश
जैसा कि यासिन मलिक ने अपने शपथपत्र में बताया, 2006 में लश्कर‑ए‑तायबा के मुख्य हाफ़िज़ सईद से हुई मुलाकात कोई आकस्मिक नहीं थी। उनका कहना है कि तब इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के एक अधिकारी, जिनका नाम जॉशी बताया गया, ने उन्हें सीधे निर्देश दिया कि वह पाकिस्तान यात्रा के दौरान केवल राजनयिक नहीं, बल्कि आतंकवादी नेताओं से भी मुलाकात करे। ‘यदि शांति की बात करनी है तो हमलावरों को भी टेबल पर लाना पड़ेगा’—ऐसे आदेश पर मलिक ने अपना दायरा बढ़ाया।
मालिक के अनुसार, इस मुलाकात का उद्देश्य था प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ‘शांति पहल’ को समर्थन देना, जिसमें 26/11 के मास्टरमाइंड—हाफ़िज़ सईद—को भी शामिल किया गया था। मुलाकात में लीट के प्रमुख ने विभिन्न जिहादी समूहों को एकत्र किया और मलिक ने उन्हें शांति के क़ाबिल संदेश देने की कोशिश की, जिसमें उन्होंने कुरान की आयतों को उद्धृत कर कहा, ‘अगर कोई आपको शांति की पेशकश करे, तो उसे स्वीकार करो’।
बाद में, भारत लौटने पर मलिक को IB ने डिब्रीफिंग करवाई और फिर सीधे प्रधानमंत्री के पास ले गया। यहाँ तक कि उन्होंने दावा किया कि मनमोहन सिंह ने व्यक्तिगत रूप से उनका हाथ थामते हुए ‘धन्यवाद’ कहा और इस कदम को अपनी ‘शांति की जीत’ बतलाया। इस बात को मिल्क ने ‘सत्ता द्वारा दिल की गहरी रेंज’ कहा, जबकि आज के राजनीतिक माहौल में यह बयान बड़ी हलचल पैदा कर रहा है।

राजनीतिक आरोपों की विस्तृत लकीर
हाफ़िज़ सईद के साथ मुलाकात से लेकर RSS, शंकराचार्याओं और कई भारतीय मुख्य मंत्रियों के साथ मिलने तक, मलिक ने इस हलफ़नामा में कई अन्य दावे रखे हैं। वह बताते हैं कि 2001 में द Centre for Dialogue and Reconciliation ने उन्हें भारत इंटरनेशनल सेंटर में पाँच घंटे की मीटिंग का मौका दिया, जहाँ उन्होंने RSS के वरिष्ठ नेताओं से गहरी बातचीत की। इस सत्र में उन्होंने भारत के विचारधारा वाले समूहों को ‘संवाद की महज़ एक और परीक्षा’ माना।
इसके अलावा, मालिक ने बताया कि उन्हें वीवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के चेयरमन एडमिरल के.एन. सूरी के घर कई बार बुलाया गया। उन्होंने कहा कि दो शंकराचार्याओं ने उनके श्रीनगर घर का कई बार दौरा किया, यहाँ तक कि प्रेस कॉन्फ्रेंस भी आयोजित किया। इन घटनाओं को उन्होंने ‘विचारधारा के विभिन्न धागों के साथ एकजुटता की कोशिश’ के रूप में वर्णित किया।
मलिक का दावा है कि 1990 के दशक के अंत से लेकर मोदी के पहले कार्यकाल तक, कई प्रधान मंत्री—चन्द्रशेखर, अटल, उस्मानी, मनमोहन और नरेंद्र—सबके साथ उन्होंने ‘शांति के प्रस्ताव’ पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हर एक प्रधानमंत्री ने उन्हें और उनके समूह को ‘नया पन्ना लिखने’ की कोशिश की, लेकिन अंततः इन अपीलों को राजनीतिक चालबाज़ी के रूप में बदला गया।
इन सभी खुलासों ने कश्मीर नीति के बारे में नई सवाल उठाए हैं। क्या कांग्रेस‑युग की शांति रणनीति सच में ‘संवाद’ पर आधारित थी या यह सिर्फ एक कूटनीतिक खेल था? क्या IB ने वास्तव में आतंकवादी समूहों के साथ इस तरह के ‘संवाद’ को मंजूरी दी थी, या यह सब एक वैध जांच का हिस्सा था? अब अदालत में इस दस्तावेज़ की वैधता और उसके पीछे की सच्चाई का पता चलना बाकी है।
Aswin Yoga
मैं एक पत्रकार हूँ और भारत में दैनिक समाचारों के बारे में लेख लिखता हूँ। मेरा उद्देश्य समाज को जागरूक करना और सही जानकारी प्रदान करना है।
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