नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम के बुलावे पर मचा बवाल: पहलगाम हमलों के बाद खेल से परे घमासान

नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम के बुलावे पर मचा बवाल: पहलगाम हमलों के बाद खेल से परे घमासान

Aswin Yoga
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जुलाई 20, 2025

नीरज चोपड़ा और अरशद नदीम की दावत क्यों बन गई विवाद की वजह?

टोक्यो ओलंपिक के गोल्ड मेडलिस्ट नीरज चोपड़ा इन दिनों सोशल मीडिया पर जबरदस्त आलोचना का सामना कर रहे हैं. वजह – उन्होंने पाकिस्तान के स्टार जेवलिन थ्रोअर अरशद नदीम को मई 2025 में बेंगलुरु में होने वाले नीरज चोपड़ा क्लासिक में बुलावा भेजा था. पहलगाम में हुए आतंकी हमलों के ठीक बाद ये चर्चा और आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गए. कई यूजर्स ने आरोप लगाया कि देश के इतने बड़े खिलाड़ी को इस दौर में पाकिस्तानी एथलीट को निमंत्रण नहीं भेजना चाहिए था.

मामला यहीं तक नहीं रुका. चोपड़ा की देशभक्ति को भी सोशल मीडिया पर सवालों में घेर लिया गया. कुछ ऐसे कमेंट्स देखने को मिले जहां फैन्स और कई राजनैतिक लोग भी उनके परिवार को ट्रोल करने लगे. आरोप लगा कि इतना बड़ा हमला होने के बावजूद पाकिस्तानी खिलाड़ी को बुलाना कहाँ तक सही है?

नीरज की सफाई और दोस्ती पर सवाल

नीरज चोपड़ा ने फौरन सोशल मीडिया पर स्पष्ट किया कि जिन एथलीट्स को बुलावा भेजा गया, उनमें अरशद नदीम भी शामिल थे और ये सब 22 अप्रैल 2025 को हुआ था. यानी, पहलगाम की घटना (24 अप्रैल) से दो दिन पहले. नीरज ने साफ कहा, “जो निमंत्रण अरशद को भेजा गया, वो सिर्फ खेल भावना के तहत था. इसमें पॉलिटिक्स की कोई बात नहीं थी.” उनका मकसद भारत में इंटरनेशनल स्तर की प्रतियोगिता करवाते हुए देश में एथलेटिक्स को आगे बढ़ाना और टॉप एथलीट्स को बुलाना था.

इसके बावजूद बवाल रुकने का नाम नहीं ले रहा. आयोजकों ने बाद में जारी प्रतिभागियों की सूची में अरशद का नाम नहीं रखा. वजह – अरशद ने खुद ट्रेनिंग शेड्यूल की वजह से आने से मना कर दिया था. लेकिन, इस पूरे मुद्दे के चलते दोनों के बीच की दोस्ती भी चर्चा में आ गई. सोशल मीडिया और मीडिया में ये इमेज बनी थी कि नीरज और अरशद अच्छे दोस्त हैं और दोनों अक्सर खेल भावना का उदाहरण देते हैं. लेकिन ताजा विवाद के बाद नीरज ने साफ किया, “हमारे बीच कभी गहरी दोस्ती रही ही नहीं...सिर्फ खिलाड़ी होने के नाते सम्मान था.”

अरशद नदीम ने भी इस मसले पर ज्यादा बोलने से इनकार कर दिया. वो फिलहाल पाकिस्तानी सेना और अपनी नेशनल टीम के साथ खुद को जोड़कर देख रहे हैं. उन्होंने पेरिस 2024 ओलंपिक में गोल्ड जीता है और भारत-पाक तनाव के वक्त खुद को अपने देश के पक्ष में खुलकर रखते दिखे.

पूरा विवाद यह बताता है कि किस तरह खेल और राजनीति के बीच की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं. खिलाड़ियों की निजी कोशिशें भी सिर्फ एथलेटिक्स तक सीमित नहीं रह पातीं. चाहे वे खेल से जोड़ने के मकसद से कुछ करें, उनका हर कदम सोशल मीडिया पर राजनीतिक नजरिये से देखा जाता है. कौन किस देश के खिलाड़ी को बुला सकता है, ये बहसें मैदान से बाहर हर बार नई चर्चा छेड़ देती हैं.

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